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THE INDIAN ARMY

साहस और बलिदान भारतीया सेनिको का। 

मैं जानता हूं कि देश की सेना मुझसे ज्यादा समझदार लोगों से बनी है और उसे मेरी सलाह की जरूरत नहीं। फिर भी मेरा मन कर रहा है कि एक सलाह जो मेरे दिमाग में कई दिनों से कुलबुला रही है, उसे दे ही डालूं। मैं सेना के लोगों से कहना चाहता हूं कि साथियो, टीवी पर बैठे लोग कितना भी कहें, आपको कितना भी उकसाएं, लेकिन आप इनके उकसावे में लड़ाई मत छेड़ बैठना। मैं जानता हूं कि आप कोई बड़ा कदम सिर्फ इसलिए नहीं उठाएंगे कि टीवी के एंकर और उनके जांबाज मेहमान ऐसा कह रहे हैं, फिर भी मैं अपनी ओर से आगाह कर रहा हूं।
पिछले कई दिनों से टीवी वालों को वीर रस का नशा चढ़ा हुआ है। उन्हें यह समझ में आ गया है कि देशभक्ति और वीर रस, अपराध और भूत-पिशाच से बहुत ज्यादा बिकता है, सो वे युद्ध छेड़ देने पर आमादा हैं। अगर कल इनके कहने से सचमुच युद्ध हो जाए और इन्हें देशभक्ति से ज्यादा टीआरपी वाला कोई मसाला मिल जाए, तो ये उसके पीछे चल देंगे और युद्ध झेलने के लिए सेना और आम जनता रह जाएगी। मैं नहीं कहता कि सेना इनका मानकर लड़ाई कर देगी, भले ही इनके साथ कड़कदार मूंछों वाले रिटायर्ड फौजी अफसर भी बैठे हों। भारतीय सेना ने आजादी के बाद कोई जंग खुद नहीं शुरू की, और भारत को सन 1971 के बाद कोई बड़ी जंग नहीं लड़नी पड़ी, यह भी हमारी सेना के रुतबे का प्रमाण है। फिर भी टीवी पर बैठे लोग ऐसे युद्ध के मूड में हैं कि मैंने सोचा, सलाह दे ही दूं। क्या पता, इनकी चिक-चिक से तंग आकर ही फौजी लड़ने पर आमादा हो जाएं, या कौन जाने टीवी का सचमुच असर ही हो जाए? सोचना पड़ता है, क्योंकि जमाना बड़ा खराब है।
मैं अगर थोड़ी देर टीवी देख लेता हूं, तो मुझे लगने लगता है कि अब तो युद्ध के अलावा कोई चारा नहीं है। मैं फिर अपने आप को समझाते हुए कहता हूं कि फौजी भाई मुझसे ज्यादा समझदार हैं, मेरी तरह नहीं कि टीवी वालों की बातों में आ जाएं। फिर भी मुझे लगा, तो मैंने सलाह दे डाली, आगे आप जानो।
सीमा पर पाकिस्तान की एक और कायराना हरकत के बाद अगर देश में गुस्सा है, तो भारत सरकार और भारतीय सेना के संदेश भी साफ और सख्त हैं। देश के हर कोने से आक्रोश भरी आवाजों और पाकिस्तान की हरकत के बाद घाटी में उत्पन्न हालात के बीच सेना ने भी दो टूक जवाब दिया है। सरकार ने घटना के तत्काल बाद ही अपने रुख का संकेत दे दिया और सेना ने समय न गंवाते हुए सोमवार को ही पाकिस्तान की वे दोनों चौकियां ध्वस्त कर दीं, जहां से पाकिस्तानी सैनिकों को उस वक्त कवरिंग फायर मिला था, जब वे पुंछ की कृष्णा घाटी में बीएसएफ चौकियों को निशाना बना रहे थे। वे हमारे दो शहीद जवानों के सिर भी काट ले गए। जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान के भी सात सैनिक मारे गए। एलओसी पर उपजे तनाव के बीच सख्त रुख दिखाते हुए सरकार ने सेना को जवाब देने की खुली छूट दे दी है और सख्ती से बता दिया है कि भारतीय जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। तनाव के माहौल के बीच जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मिले हैं और रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री को ताजा स्थिति से अवगत कराया है। इस घटना के बाद पाकिस्तान सफाई में कुछ भी कहे, लेकिन ठंडे पड़े रिश्तों के बीच यह तनाव बढ़ाने का कारण तो बन ही गया है। क्योंकि सच तो यही है कि ऐसी घृणित कार्रवाई तो सेनाएं युद्धकाल में भी नहीं किया करतीं। पाकिस्तानी सेना ने तो शांति काल में यह बर्बर कार्रवाई की है। बदले हालात को अनुकूल न मानते हुए निर्वाचन आयोग ने 25 मई को प्रस्तावित अनंतनाग लोकसभा क्षेत्र का उप-चुनाव स्थगित कर दिया है।
दरअसल यह समय पाकिस्तानी कायरता और बर्बरता पर करारी कार्रवाई और सख्त संदेश देने का ही वक्त है। यही कारण है कि भारत सरकार ने फिलहाल जैसे को तैसा की तर्ज पर सेना को खुली छूट दे दी है। कृष्णा घाटी की यह हरकत पाकिस्तान की पहली कायराना हरकत नहीं है। 2013 में भी पाकिस्तान की बॉर्डर एक्शन टीम (बैट) ने ऐसी ही बर्बरता शहीद हेमराज के शव के साथ की थी। इस बार भी यह घटिया हरकत बैट ने ही की। यह वही बैट है, जिसके बारे में यह ख्यात है कि इसमें सैनिकों के साथ ही प्रशिक्षित आतंकी भी शामिल हैं। इस घटना के पीछे पाकिस्तान की सोची-समझी उकसाने की साजिश से भी इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह सब उस वक्त हुआ, जब ठीक कुछ देर पहले ही पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष ने इस इलाके का अपना दौरा खत्म किया था।  
पाकिस्तान की कायरता और देश में उपजे तमाम आक्रोश के बावजूद भारतीय मानस के धैर्य का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि चार साल पहले ऐसी ही बर्बरता का शिकार हुए शहीद हेमराज के परिवार ने इस घटना पर अत्यंत संयत प्रतिक्रिया दी है। उस परिवार की चिंता जायज है कि ‘जब हमारा बेटा शहीद हुआ था, तब एक सिर के बदले दस सिर लाने की बात कही गई थी, लेकिन सरकार ने ठोस कार्रवाई नहीं की। अब ठोस कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि हमारे और जवान शहीद न हों।’ हेमराज के परिवार ने इतना दर्द सहने के बाद भी बदले की बात नहीं की। वे सीमा पर ठोस कार्रवाई और पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात कर रहे हैं, लेकिन संयत स्वर में। यह भारत की परंपरा है और यही भारतीय मानस का सरोकार। इस बीच भारी मन के साथ दोनों शहीद जवानों परमजीत और प्रेमसागर को अंतिम विदाई दे दी गई। शोक की इस घड़ी में भी परमजीत की पत्नी का बेटे को सीमा पर भेजने का संकल्प भी भारतीय मानस की जिजीविषा का संकेत दे रहा है।
भारतीय सैन्य व्यवस्था विश्व की श्रेष्ठतम व्यवस्थाओं में से एक है जिसमें सीमित संसाधनों के द्वारा भी विजय प्राप्त करने की क्षमता विद्यमान है ऐसे अनेकों अवसर आये जब भारतीय सैनिकों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपनी देशभक्ति का अदभुत परिचय दिया ।
लेकिन संसाधनों के अभाव के बाद भी भारतीय सेना विश्व की किसी भी सेना से मुकाबला करने में श्रेष्ठ है जो केवल भारतीय सेना के अदभुत साहस के बल पर ही सम्भव है । यह सब सम्भव है उनके धैर्य पर भी जो अपने घर-परिवार से दूर देश की सीमा पर दिन-रात एक कर डटे हुए हैं और उफ तक नहीं करते ।
यह भारतीय सेना के अनुशासन की मिशाल है । इस देश के नीतिकारों को इस गम्भीर विषय पर विचार कर भारतीय सैनिकों की पीड़ा को समझना चाहिए कि घर-परिवार से दूर रहना कितना पीड़ादायक होता है । इस गम्भीर समस्या के समाधान हेतु कोई ठोस कदम उठाना चाहिए ताकि भारतीय सैनिकों को घर-परिवार से दूर रहने की पीड़ा न झेलनी पड़े । भारतीय सैनिक ही देश के सच्चे सेवक व देशभक्त हैं जो सैकड़ो कष्ट उठाकर इस देश को सुरक्षित रखते हैं ।
वे सुरक्षित रखते हैं इस देश के नीतिकारों को, वे सुरक्षित रखते हैं देश के मान-सम्मान को, वे सुरक्षित रखते हैं इस देश की मर्यादा को, वे सुरक्षित रखते हैं इस देश के नागरिकों को, वे सुरक्षित रखते हैं इस देश की युवा शक्ति को, वे सुरक्षित रखते हैं इस देश के बुद्धिजीवियों को, लेकिन उक्त सब लोग इसके बदले मे इस देश के सैनिकों को क्या देते हैं ।
कभी किसी ने विचार किया ही नही, ये सब लोग देश के सैनिक परिवारों तक को सुरक्षित नहीं रख पाते । एक तो वो सैनिक जो इस समस्त देश को सुरक्षित रखते हैं और दूसरी ओर वो समस्त नागरिक जो इस देश की सीमा के अन्दर रहते हुए उन सैनिक परिवारों को भी सुरक्षित नहीं रखपाते जिनके जाबाज बहादुर सम्पूर्ण देश को सुरक्षित रखते हैं । यह व्यवस्था की कमी कही जा सकती है या फिर नागरिकों की इच्छा शक्ति की ।
यहां भारतीय व्यवस्था तो दोषी है ही जो आजादी के तिरेसठ वर्ष बाद भी भारतीय सैनिकों के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध करने में असमर्थ रही है । जो असमर्थ रही है उनको ऐसी व्यवस्था करने में कि भारतीय सैनिकों को देश की सीमा, सीमा नहीं अपना घर परिवार दिखायी दे ।
प्रत्येक सैनिक को सीमा पर भी परिवार रखने की व्यवस्था हो जब भारतीय सैन्य अफसर प्रत्येक जगह अपने परिवार के साथ रह सकते हैं । तो भारतीय सैनिक क्यों नही ? आधुनिकता के इस युग में जब तकनीकी अपने उच्चतम शिखर पर है तब भी भारतीय सैनिक उच्च तकनीकी को मोहताज हैं और केवल अपने धैर्य और साहस के दम पर ही अपना कर्त्तव्य निभा रहे हैं ।
अन्यथा भारतीय सेना की तस्वीर ही कुछ और होती, जिसके लिए दोषी है भारतीय व्यवस्था जो अपने रक्षकों को पर्याप्त तकनीकी सुविधाओं तक मुहैया नहीं करा पा रही है । इसके अलावा जो सुविधाएं भारतीय सैनिकों के परिवारों को मिलनी चाहिए जिससे उन सैनिक परिवारों को अपने आप को नागरिक परिवारों से अलग होने का एहसास हो सके ।
वे मूलभूत सुविधाएं भी सैनिक परिवारों को नसीब नहीं हो पा रही है जिसका परिणाम यह है कि वर्तमान समय में कुछ अपवादों को यदि छोड़ दिया जाए तो कोई भी युवा सेना में भर्ती होने में रूचि नहीं ले रहा है यही कारण है कि वर्तमान समय में सेना में हजारों अफसरों व लाखों सैनिकों की कमी चल रही है ।
जिसके पीछे निजी क्षेत्र की चकाचौंध भरी जिन्दगी, अच्छा वेतन पैकेज भी युवाओं को सेना में भर्ती होने से रोक रहा है । आधुनिकता की इस दौड़ में युवा देश प्रेम का पाठ भूलकर धन प्रेम का पाठ पढ़ रहे हैं । 


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